Monday, 31 October 2011

दारु खराब है ll



KHAMMA-GHANI Sa..
I'M THANKFUL TO "KUNWAR VIJENDRA SINGH JI"
some Great lines of kunwarsa's share by me on my Blog.
Requested to all rajput's Bhai....plz mind it....*


((जय माता जी की बन्ना लोगों , आज में अपने समाज की बुराई जिस पर नियंत्रण करना बहुत जरुरी है, कुछ चर्चा करना चाहूँगा ! ये है शराब, ( मदिरा , दारु ) ये वो बुराई है जो हमारे समाज को भीतर ही भीतर खाए जा रही है .. मैंने अपने २४ साल के जीवन में इस बुराई को बहुत ध्यानसे देखा है , और में इसका भुगतभोगी हूँ ... कुछ पंक्तियाँ लिख रहा हूँ आशा है आप अमल करेंगे ,, और इस बुराई को खत्म करने में मेरा सहयोग करेंगे !


दारु एक दवाई है करती चोखो काज !
आज भर भर बोतल पिवन बेठ्यो समाज !
दारू में रजवाड़ा गया और गया राजाओ का राज !
अब भी सुधर जाओ थे मत होवो बर्बाद !
गहनों बिक गयो गांठो बिक्ग्यो बिकगी जमी जायदाद !
एक रिपिया री पैदा कोनी क्यूँ हो रया बर्बाद !
घरां पेली पावना आता बान चाय पानी री मनवार कराता !
अब मेहमाना बोतल प्याओ !
नहीं मिले तो दो चार थैली ल्याओ !
नहीं मिली तो इज्जत जावे !
खाली रोटी घालता शर्म सी आवे !
पाड़ोसी के फोजी आयो दो चार बोतल जरुर ल्याओ !
कह ठुकरानी बेगा ल्याओ पावना तो कीया जिया ही पाओ !
दारु आपां थ्री एक्स ले स्यां रिपिया रोकड़ी १५० देस्या !
ठाकर रिपिया जेब में घाल्या घरां सु खाता खाता चाल्या !
घरां सु ठाकर ठेके पर आया बा कुणसी है थ्री एक्स दे रे भाया !
घरां पावना आया चोखी दे जे रे भाया !
बाबोसा अबार ही गाडी आई थैली आपां २०० गिरवाई !
रिपिया में था सुं नगदी में ले स्या जना माल चोखो ही दे स्या !
दो चार बोतला अंग्रेजी में आई बे ठाकरा था खातर ही रखवाई !
बोतल कन्टेसा री आई ठाकर ने काढ पकड़ाई !
थैली दो दे दे कलासी बां घाल ले स्यूं निरवाली !
थैली पेट में एक गेरी आयां हु गी घनी देरी !
घरां घरवाली खड़ी उडीके कठे ठाकर आता दिखे !
आज सगली काली हु ज्यासी अब ठाकर कुन सी हालत में सी !
अब ठाकर मुस्किल सी घरां पुग्या घर का लाल ताता हुग्या !
ठाकर ले बोतला घरां पुग्या जना दो चार लुंका सागे हो ग्या !
आज पावना आया दिखे जना ही लुंका मन उडीके !
दो चार पेग मिल ज्य़ासी जना आज को काम बन ज्यासी !
अब बोतल अंग्रेजी री आई बोतल बाजोटा पर सजाई !
भायो गिलास कांच को ल्यायो लोटो पानी को पकडायो !
दारु गिलासा में घाली जतान प्लेट पापड की आली !
प्याला चाले है चोखा ठुकरानी बैठ गी है झरोखा !
अब सगा सगा करे है बात पीता पीता ढलगी रात !
अंग्रेजी दारु खत्म होगी अब खोल दी है थैली !
डाकिवाड़ो सूझ गयो ठाकरा ने शान कियां रेली !
टाबर फिरे आगे आगे कँवर सा रोटी कणा सी मांगे !
रोटी आधी रात मंगवाई बा भी ऊपर छात पर आई !
थाल बाजोटा पर आयो थाल ने चोखो घनो सजायो !
म्हारे घरां बटेऊ आया भोजन खीर खांड का बनाया !
फुलकी दूपडती बनवाई घी घाल गल्घच करवाई !
सान्ग्र्या को रायतो बनायो टीटा को अचार !
अब पीकर हो गया बावला खानों गयो बेकार !
अब सगा गास्या दिरावे बेरियाँ ने मुंडा नजर आवे !
सगा सगा आपस में बतलावे बात बा री समझ नही आवे !
अब रोटी जीमन रो होश नही है खानों निचे ढुल रियो है !
पीकर मतवाला बन गया है अन्न देव कियां रूस रिया है !

 कुं. विजेंद्र शेखावत
     
सिंहासन ))

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